महिलाओं की नौकरी जाने की दर 1.8 प्रतिशत ज्यादा
लैंगिक असमानता के चलते कामकाजी महिलायें सबसे ज्यादा प्रभावित
महिलाओं को महामारी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है, खासकर उनको जो
कामकाजी हैं । पुरुषों की तुलना में महिला कर्मचारियों और उद्यमियों को
छंटनी और व्यावसायिक नुकसान का सामना करना पड़ा और यह प्रभाव अभी जारी है।
मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट के हालिया विश्लेषण के अनुसार पहले से मौजूद
लैंगिक असमानताओं के कारण महिलाएं कोविड19 से पड़ने वाले आर्थिक प्रभावों
की ज्यादा शिकार हुई हैं। असमानता का यह प्रभाव बहुत ज्यादा है। संयुक्त
राज्य अमेरिका और भारत जहाँ लिंग भेद सम्बन्धी डेटा उपलब्बेध हैं वहां
रोजगारी सर्वेक्षणों के डेटा और रुझानों का उपयोग करते हुए किये गये
अध्ययन का अनुमान है कि कोविड 19 के कारण वैश्विक स्तर पर पुरुषों की
तुलना में महिलाओं की नौकरी जाने की दर लगभग 1.8 गुना अधिक है। पुरुष के
5.7% प्रतिशत की तुलना में क्रमशः 3.1% प्रतिशत।
इस प्रवृत्ति की पुष्टि करते हुए महिलाओं के लिये काम करने वाली संस्था
इंडेंन्जेरड की संस्थापक इपशिता सेन ने बताया कि अध्ययन से पता चलता है
कि भारत में हर 10 में से चार कामकाजी महिलाओं ने लॉकडाउन के बाद अपनी
नौकरी खो दी है। इसी तरह 90% महिला उद्यमियों ने अपने बिक्री राजस्व में
उल्लेखनीय कमी दर्ज की है।
महिला उद्यमी इस स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित हैं क्योंकि वे
ज्यादातर क्षेत्रों जैसे कि भोजन, कला, मनोरंजन और खुदरा क्षेत्र में काम
करती हैं, जो महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। हालाँकि अभी
कोविड 19 महामारी का प्रभाव जारी है और साथ साथ जीवन और आजीविका को तबाह
करने का क्रम भी जारी है तब यह पहले से ही स्पष्ट है कि इसका महिलाओं पर
अधिक नकारात्मक प्रभाव पडेगा और लिंग समानता की दिशा में प्रगति होती
रहेगी।
भारत में दूसरी तिमाही (अप्रैल से जून 2020) में रोजगार की संख्या बताती
है कि अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में प्रतिशत खोने वाली महिलाओं की
संख्या प्रतिशत के रूप में अधिक थी। मैकिन्से की रिपोर्ट के अनुसार
वैश्विक स्तर पर कुल रोजगार में महिलाओं का हिस्सा 39% हिस्सा है लेकिन
नौकरी में हुए नुकसान में उनका प्रतिशत 54% है। यह एक विषम लिंग भेद का
संकेत है जो दुनिया भर में सच हो सकता है।
इस तरह की असमानता वैसे भी कार्यस्थलों और अन्य जगहों पर हमेशा महिलाओं
के साथ होती चली आ रही है। लेकिन, महामारी में यह और बढ़ी है और खुल कर
सामने आ गयी है।
जयपुर में एक महिला विश्वविद्यालय जयोति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय
के संस्थापक और सलाहकार डॉ पंकज गर्ग ने बताया कि महामारी ने लैंगिक
असमानता को सामने ला दिया है और लोगों में इस भेदभाव को लेकर आक्रोश बढ़
गया है। यह विभिन्न चैनलों पर चर्चा का विषय भी बन रहा है और सोशल मीडिया
भी इसे लेकर दबाव बना रहा है। इसलिए संस्थाओं को अपनी महिला कर्मचारियों
के प्रति सम्वेदनशीलता बढ़ानी चाहिये और चयन में ध्यान रखना चाहिये की
उनसे भेदभाव न हो। इसके अलावा चयन में परफॉरमेंस का ध्यान रखा जाना चाहिये न कि लैंगिकता का
जयपुर की एक प्लेसमेंट फर्म ओप्पोर्चुनिटी की निदेशक बबिता मिश्रा ने
बताया कि जयपुर में महिला पेशेवर और महिला उद्यमी महामारी के आर्थिक
प्रभाव से अछूती नहीं हैं। “यह सच है कि पुरुषों की तुलना में अधिक
महिलाएं नौकरियां खो रही हैं। महिलाएं हर तरह से, महामारी से अधिक
प्रभावित होती हैं। यह हर जगह सच है और यही हाल हमारे शहर का भी है।
फैशन डिजाइनिंग और खानपान सेवाओं से लेकर महिलायें कलाकार और हेयर ड्रेसर
तक हैं और ये सभी दबाव में हैं। हमारे शहर के 100 से अधिक प्लेस्कूलों के
या हमारे कई कॉरपोरेट्स हाउसेज , मैरिज हॉल के हाउसिंग स्टाफ की नौकरी
चली गयी है। इससे प्रभावित होने वालों में महिला शिक्षकों की संख्या बहुत
ज्यादा है।
जयपुर की एक प्लेसमेंट फर्म ओप्पोर्चुनिटी की निदेशक बबिता मिश्रा ने
बताया कि जयपुर में महिला पेशेवर और महिला उद्यमी महामारी के आर्थिक
प्रभाव से अछूती नहीं हैं। “यह सच है कि पुरुषों की तुलना में अधिक
महिलाएं नौकरियां खो रही हैं। महिलाएं हर तरह से, महामारी से अधिक
प्रभावित होती हैं। यह हर जगह सच है और यही हाल हमारे शहर का भी है।
फैशन डिजाइनिंग और खानपान सेवाओं से लेकर महिलायें कलाकार और हेयर ड्रेसर
तक हैं और ये सभी दबाव में हैं। हमारे शहर के 100 से अधिक प्लेस्कूलों के
या हमारे कई कॉरपोरेट्स हाउसेज , मैरिज हॉल के हाउसिंग स्टाफ की नौकरी
चली गयी है। इससे प्रभावित होने वालों में महिला शिक्षकों की संख्या बहुत
ज्यादा है।