फ्रांस की अदालत ने दुनिया को दिया संदेश

Thursday 11 Feb 2021 विचार

पर्यावरण प्रदूषण को लेकर सारी दुनिया में माहौल बन रहा है पर सरकारें अभी भी गंभीर नजर नहीं आ रही है।

 
डॉ. राजेंद्र प्रसाद शर्मा फ्रांस की अदालत ने भले ही सरकार पर एक यूरो का प्रतीकात्मक दण्ड लगाया पर दुनिया के देशों को एक बड़ा संदेश दे दिया है। दरअसल पर्यावरण प्रदूषण को लेकर सारी दुनिया में माहौल बन रहा है पर सरकारें अभी भी गंभीर नजर नहीं आ रही है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर विश्व मंच पर खूब चर्चाएं होती है, बड़े-बड़े आयोजन होते हैं, सेमिनार-गोष्ठियां ही नहीं अपितु दुनिया के देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलनों में बड़ी-बड़ी घोषणाएं होती हैं पर जब निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार काम करने की बात होती है तो वह गंभीरता नहीं दिखाई देती है। यही कारण है कि फ्रांस के कुछ गैर सरकारी संगठनों ने जलवायु खतरों को कम करने के तय निर्धारित लक्ष्यानुसार काम नहीं होने पर अपनी ही सरकार के खिलाफ अपने देश की अदालत में गुहार लगाई। मजे की बात यह कि चार गैर सरकारी संगठनों ने ऑनलाइन याचिका दायर की और फ्रांस के 23 लाख लोगों ने इस याचिका पर ऑनलाईन हस्ताक्षर किए। गैर सरकारी संगठनों ने पेरिस समझौते के अनुसार फ्रांस सरकार द्वारा तयशुदा लक्ष्यों को निर्धारित समय सीमा में पूरा नहीं करने पर सरकार के खिलाफ याचिका दायर की। अदालत ने भी गंभीरता दिखाई और चाहे प्रतीकात्मक रूप से ही सरकार को दण्डित किया गया हो पर यह अपने आप में सराहनीय कदम माना जाएगा। फ्रांस के गैर सरकारी संगठनों का आरोप था कि पेरिस समझौते के अनुसार फ्रांस सरकार को जलवायु संरक्षण के लिए कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के जो लक्ष्य थे, उन्हें प्राप्त करने की दिशा में जिस तेजी से काम होना चाहिए था वह नहीं हो रहा। इसी तरह से रिन्यूबल एनर्जी, मकानों में ऊर्जा नवीकरण के साथ ही आर्गेनिक खेती के लिए जो लक्ष्य तय किए थे उन लक्ष्यों को पूरी तरह से अर्जित नहीं किया जा सका। कहने का अर्थ यह कि फ्रांस की सरकार द्वारा इस दिशा में काम तो किया जा रहा था पर लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जिस तेजी से काम होना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा था। जिसके परिणामस्वरूप तय समय सीमा में लक्ष्य प्राप्त नहीं होते दिखाई दे रहे हैं। फ्रांस के गैर सरकारी संगठन निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने सरकार को चेताने का सार्थक प्रयास किया और अदालत ने भी प्रतीकात्मक रूप से एक यूरो का दण्ड लगाकर फ्रांस की सरकार को एक संदेश दिया। देखा जाए तो यह संदेश फ्रांस की सरकार के लिए ही नहीं अपितु फ्रांस की अदालत ने इसके माध्यम से दुनिया की दूसरी सरकारों को भी संदेश दिया है। दरअसल पंच सितारा होटलों में आयोजित बड़े-बड़े सम्मेलनों में खूब चिंतन मनन होता है, पर्यावरण प्रदूषण की चिंता व्यक्त की जाती, पर्यावरण संतुलन के लिए बड़-बड़े प्रस्ताव पास किए जाते हैं पर जब उनके क्रियान्वयन का अवसर आता है तो सरकारें उतनी गंभीर नहीं दिखाई देती हैं। जलवायु परिवर्तन का खामियाजा आज सारी दुनिया भुगत रही है। रविवार 7 फरवरी को ही हमारे देश में चमोली में ग्लेशियर टूटकर ऋषिगंगा में गिरने से आई तबाही सामने है, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों के मरने की आशंका व्यक्त की जा रही है। जनहानि के साथ ही धनहानि हुई है। इससे पहले उत्तराखण्ड में ही कुछ साल पूर्व की त्रासदी के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। यह हमारे देश की ही बात नहीं है। दुनिया के देशों में किस तरह से समुद्र अपना आपा खोता जा रहा है और फलस्वरूप तूफानों, सुनामियों का दौर चला है वह बेहद चिंताजनक है। धरती का तापमान बढ़ रहा है। जंगलों में आग लगना, अत्यधिक व बेसमय बरसात के कारण आनेवाली बाढ़ और सूखे से सारी दुनिया दो-चार हो रही है। पहले की तुलना में धरती अब अधिक कंपायमान होने लगी है तो ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं। यहां तक कि प्रजातियां नष्ट होती जा रही है। यह सब सारी दुनिया के सामने हैं। औद्योगिकरण, शहरीकरण, प्रकृति का अत्यधिक दोहन का ही परिणाम है कि वातावरण दूषित होता जा रहा है। नई-नई बीमारियां आ रही हैं। बेहद चिंतनीय स्थिति होती जा रही है। मोहल्ले में गौरेया तक देखना नसीब की बात होता जा रहा है तो जलवायु परिवर्तन के कारण शुद्धता या यों कहें कि प्राकृतिक हवा, पानी की बात करना ही बेमानी है। अभी भी समय है। फ्रांस की अदालत के माध्यम से दुनिया के देशों को संदेश दिया गया है, उसे गंभीरता से लेना ही होगा। गैर सरकारी संगठनों को भी बड़े-बड़े सेमिनारों या गोष्ठियों के साथ ही ठोस प्रस्ताव लेकर सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहभागी की भूमिका निभानी होगी नहीं तो आनेवाली पीढ़ियां हमें माफ करने वाली। फ्रांस की अदालत के फैसले को एक संदेश के रूप में लेकर ही आगे बढ़ना होगा तभी देश- दुनिया को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से समय रहते बचाया जा सकेगा। पेरिस सम्मेलन जैसे सम्मेलनों में गंभीरता से विचार-विमर्श और व्यावहारिक प्रस्तावों और लक्ष्यों की ओर ध्यान देना होगा। प्रस्तावों के क्रियान्वयन के लिए सरकारों को गंभीर होना होगा। विश्व संगठनों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, प्रस्तावों का क्रियान्वयन तयशुदा लक्ष्यों को समय सीमा में ही पूरा करने के लिए सरकारों को बाध्य करना होगा। तभी जाकर हम आनेवाले कल की चेतावनी को समझ सकेंगे और इस धरा पर जीवन को आसान बनाना संभव हो सकेगा।

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