भारी लाभ से किसानों का जीवन हो रहा आसान
भोपाल, 28 मई (हि.स.)। यह समय देश में उन्नत खेती के लिहाज से कपास उत्पादन के लिए सबसे अच्छा समय है। विश्व में निरंतर बढ़ती खपत और विविध उपयोग के कारण कपास की फसल को सफेद सोने के नाम से दुनिया जानती है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि जब खेती किए जाने वाले किसी बीज के साथ सोना शब्द जुड़ जाए तो समझ लीजिए उसका महत्व किसानों के समृद्ध जीवन के लिए कितना अधिक है। मध्य प्रदेश में निमाड़-मालवा का क्षेत्र ऐसा है जहां कई जिलों में खरीब की फसलों में धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन, उड़द, तुअर, कुल्थी, चना, मटर के साथ ही बड़ी मात्रा में कपास (सफेद सोना) की पैदावार है।
हर बार की तरह इस बार भी यहां किसानों को कपास की खेती से बहुत उम्मीदें हैं। उन्हें विश्वास है कि इस बार की खेती भी उन्हें पिछली बार की तरह मालामाल कर देगी। इसलिए यहां कृषक कोविड नियमों का पालन करते हुए मई माह से कपास की बुवाई में लग गए हैं। यह पांच माह की यह मुख्य फसल है। मई से लगना शुरू होती है और नवम्बर-दिसम्बर तक निकल जाती है।
कपास की खेती के लिए भूमि में ये होनी चाहिए विशेषता
कपास के लिए अच्छी जलधारण और जल निकास क्षमता वाली भूमि होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां इसकी खेती अधिक जल-धारण क्षमता वाली मटियार भूमि में की जाती है। यह कहना है मांगीलाल चौहान का । वे किसान कल्याण तथा कृषि विकास खरगौन में उपसंचालक हैं। चौहान कहते हैं कि जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों वहां बलुई और दोमट मिटटी में इसकी खेती की जा सकती है। यह हल्की अम्लीय एवं क्षारीय भूमि में उगाई जा सकती है। इसके लिए उपयुक्त पी एच मान 5.5 से 6.0 है। हालांकि इसकी खेती 8.5 पी एच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है।
कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की फसल
वे बताते हैं कि जलवायु के हिसाब से कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल है और 21 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। इसके अलावा उन्नत संकर एवं अन्य किस्मों में यहां विशेष रूप से जेकेएच-1, जेकेएच-2, जेकेएच-3, डीसीएच-32, जेके-35 प्रमुखता से कपास की खेती की जाती है। इसके अलावा भी कुछ अन्य किस्में हैं किंतु उनका रकबा प्रति हेक्टेयर में इन किस्मों की तुलना में बहुत कम ही रहता है ।
मध्य प्रदेश के अकेले एक जिले में ही दो लाख हेक्टेयर से अधिक में कपास की खेती
वे बताते हैं कि मुख्य रूप से मध्य प्रदेश का निमाड कपास उत्पादक क्षेत्र है। खरगौन जिला प्रमुख कपास उत्पादक जिलों में से एक है। यह जिले की प्राथमिक नकदी फसल है। यही कारण है कि कई सूती उद्योग यहां स्थापित किए गए हैं और कई वर्षों से सफलतापूर्वक ये काम कर रहे हैं। उपज का टोटल रकवा पिछले साल दो लाख 13 हजार हेक्टेयर में था । उतना ही लगभग इस बार भी होने की संभावना है यानी कि यह इस वर्ष भी दो लाख 13 हजार से लेकर 15 हजार तक जाएगा।
प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपए का किसान को मिलता है लाभ
खरगौन में कृषि का 58 प्रतिशत क्षेत्र कपास का है। जिले में 50 प्रतिशत से अधिक किसान इसे लगाते हैं। लगभग दो लाख किसान अभी यहां कपास की खेती कर रहे हैं। अच्छे किसान यहां 13 से ऊपर 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी कपास उत्पादन कर रहा है। किसान को हर हेक्टेयर में अपनी लागत निकालकर 50 हजार से अधिक की बचत हो रही है।
मध्य प्रदेश में सात लाख हेक्टेयर में लगता है कपास
वहीं, इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतीश परसाई बताते हैं कि मध्य प्रदेश के निमाड और मालवा के जिलों में खण्डवा, बुरहानपुर, खरगौर, बड़वानी, रतलाम, धार, अजीराजपुर, झाबुआ और छिंदवाड़ा में मुख्य रूप में कपास का उत्पादन होता है। एक आंकड़े अनुसार पूरे प्रदेश में छह से सात लाख हेक्टेयर में कपास लगाया जाता है। जिसमें कि यह निमाड़ में सबसे ज्यादा लगाया जाता है। उसमें खरगौर जिला सर्वाधिक है। उसके बाद बड़वानी, खण्डवा, बुरहानपुर जिलों के नाम गिनाए जा सकते हैं। इसी तरह से मध्य प्रदेश के मालवा में रतलाम, धार, झाबुआ और अलीराजपुर में इसे बहुतायत में बोया जाता है । फिर छिंदवाड़ा में सीमित सिर्फ दो ब्लॉक सौसर और पांढुर्णा में कपास लगता है जोकि प्रदेश का सबसे कम कपास लगानेवाला क्षेत्र है।
कपास का 95 प्रतिशत बीटी हाइब्रिड लगाते हैं किसान
डॉ. परसाई का कहना है कि राज्य में कपास का 95 प्रतिशत बीटी हाइब्रिड लगाया जाता है। उसके बाद संकर या देशी किस्म लगाई जाती हैं। बीटी हाइब्रिड ही क्यों इतनी लगती है ? पर वे बताते हैं कि इस विशेष नस्ल के बीज में इल्ली नहीं लगती हैं। उन्होंने बताया कि 2002 में भारत शासन ने बीटी हाइब्रिड की अनुमति दी थी, जिसमें कि सबसे पहले खरगौन में इसे लगाया गया था। धीरे-धीरे इसका एरिया बढ़ता चला गया।
अमेरिका से आया बीटी हाइब्रिड
उन्होंने बताया कि बीटी हाइब्रिड अमेरिका से भारत आया है। जीन अमेरिकन है फिर हमारे यहां के वैज्ञानिकों ने इसे अपने मौसम व जलवायु के हिसाब से ढाल लिया तथा अब यह हमारे यहां ही पैदा किया जाता है। उन्होंने ये भी जानकारी दी कि केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र नागपुर में वैज्ञानिकों ने इस बीटी हाइब्रिड किस्म की अनेक विविधता तैयार कर ली हैं, जिन्हें हम आज की भाषा में देशी संकर कपास भी कह सकते हैं।
बीटी हाइब्रिड से सम्पन्न हो रहे किसान
कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतीश कहते हैं कि बीटी हाइब्रिड के आने के बाद से कृषकों को इससे बहुत आर्थिक लाभ पहुंच रहा है। इससे बड़े पैमाने पर पर्यावरण संरक्षण हुआ है। विषाप्त कीटनाशकों का उपयोग जो पहले पूरी फसल के दौरान कई बार का था वह तीन बार तक में सीमित हुआ है। इनके अनुसार किसान को 15 मई तक कपास का बीज लगा देना चाहिए जिससे कि वह अक्टूबर में पहली चुनाई कर ले और इसके बाद आगे चौथी चुनाई तक रुक कर अपनी अच्छी पैदावार ले सके। उन्होंने बताया है कि भारत के लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्रफल में उन्नत जातियाँ, जैसे विजय, जरीला, जयाधर, लक्ष्मी, कारुंगनी, एच 14, एफ 320, सुयोग 35।1 इत्यादि बोई जाती हैं, जो अनुसंधान द्वारा निकाली गई हैं।
ये रखें सावधानियां
सावधानियों के तौर पर उन्होंने गुलाबी इल्ली से अधिक सावधानी रखने की बात कही है। कपास के मुख्य रोग उक्ठा, मूलगलन (रूट रॉट) तथा कलुआ (ब्लैक आर्म) हैं। उक्ठा के लिए रोगमुक्त जाति बोना, मूलगलन के लिए कपास के बीच में दालवाली फसलें बोना और ब्लैक आर्म के लिए ऐग्रोसन नामक दवा का बीज पर उपयोग करना लाभदायक है। साथ ही उनका कहना है कि किसान कपास बीज लेते समय विशेष सावधानी बरते। जिसमें भरोसेमंद विक्रेता से ही कपास बीज खरीदें। बीज लायसेंस धारी से कपास बीज खरीदें। तभी उनको अपनी फसल का अधिकतम लाभ मिल सकता है।
भारत है दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक
आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक एवं उपभोक्ता है। देश में कपास का क्षेत्रफल विश्व में सर्वाधिक है। कभी देश की कपड़ा मिलों को कपास के आयात पर निर्भर रहना पड़ता था। पिछले कुछ वर्षों के दौरान कपास उत्पादन कार्यक्रमों जैसी विशेष योजनाओं के शुरू होने से देश में कपास की खेती का क्षेत्रफल, उत्पादन और उपज में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिससे न सिर्फ कपास उत्पादन में देश आत्मनिर्भर बन गया है बल्कि अब अधिशेष मात्रा का निर्यात अन्य देशों को भी होने लगा है। फाईबर के रूप में कुल उत्पादन का एक तिहाई भाग विश्व बाजार में निर्यात हो रहा है। यही कारण है कि आज बांग्लादेश और चीन सक्रिय खरीदार हैं, जबकि वियतनाम और इंडोनेशिया भी भारतीय कपास की खरीदी कर रहे हैं। इन देशों के प्रमुखता से सार्क देश व युरोप के कई देशों में भारतीय कपास की मांग बनी रहती है।