भूमि संरक्षण के लिए दुनिया का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड बीकानेर के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी को
बीकानेर, 18 जून (हि.स.)। भूमि संरक्षण से सम्बंधित दुनिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय अवार्ड लैंड फॉर लाइफ के लिए इस बार बीकानेर के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी को चुना गया है। यह पुरस्कार संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (यूएनसीसीडी) की ओर से हर दो साल के अंतराल पर दिया जाता है। ज्याणी ने पारिवारिक वानिकी अवधारणा विकसित की है जिसके लिए उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। संस्था के एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी इब्राहिम थियॉ ने मंगलवार को बॉन में इसकी घोषणा की।
श्रीगंगानगर जिले की रायसिंहनगर तहसील के गांव 12 टीके के मूल निवासी व वर्तमान में बीकानेर के राजकीय डूंगर कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर श्यामसुंदर ज्याणी पिछले दो दशक से पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थल में पेड़ को परिवार का हिस्सा बनाकर जमीनी स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने में कामयाब हुए हैं। इस बेहद प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भूमि संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही दुनियाभर से संस्थाओं व व्यक्तियों, सरकारों, संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठनों, अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मनोनयन किया जाता है। इसके बाद यूएनसीसीडी का अंतरराष्ट्रीय निर्णायक मंडल अंतिम फैसला लेता है।
वर्ष 2021 के इस पुरस्कार के लिए पूरी दुनिया से 12 लोगों, संस्थाओं को फाइनलिस्ट घोषित किया गया। आज विश्व मरुस्थलीकरण एवं सूखा रोधी दिवस पर कोस्टा रिका में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में इस पुरस्कार के लिए प्रोफेसर ज्याणी के नाम की घोषणा की गयी। हालांकि इस बार अंतिम 12 नामों में भारत से ज्याणी के अलावा सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन और दुनियाभर में चर्चित उनके कार्यक्रम रेली फॉर रीवर को भी शामिल किया गया था लेकिन अंतिम तौर पर ज्याणी के कार्यों को तरजीह देते हुए उनके नाम पर मुहर लगाई गई है। आज इस पुरस्कार की घोषणा हुई है और अगस्त के आखिर में चीन में आयोजित होने वाले विशेष समारोह में ज्याणी को इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा। साथ ही पुरस्कार समारोह में प्रो ज्याणी का विशेष भाषण होगा।
ज्याणी ने अब तक कराये हैं 25 लाख पौधरोपण
यूएनसीसीडी ने ज्याणी की पारिवारिक वानिकी अवधारणा को वनीकरण का अनूठा विचार बताते हुए इसे पारिस्थितिकी अनुकूल सभ्यता के विकास के एक प्रभावी तरीके के तौर पर उल्लेखित किया है। उन्होंने 15 हजार से अधिक गांवों के दस लाख से ज्यादा परिवारों को जोड़ते हुए 25 लाख पौधरोपण करवाए हैं। राजकीय डूंगर कॉलेज परिसर में ही ज्याणी ने 6 हेक्टेयर भूमि पर 3000 पेड़ों का एक जंगल खड़ा कर दिया है जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित पैनल के फार्मूले के अनुसार गणना करने पर आज की तारीख में 1 अरब 8 करोड़ रुपये मूल्य की ऑक्सीजन उत्पन्न कर रहा है।
ज्याणी का कहना है कि संस्थागत वन मानव निर्मित जंगल की एक नई श्रेणी है जो विद्यार्थियों व स्थानीय समुदाय को सतत वन प्रबंधन के तरीके सिखाती है और पारिवारिक वानिकी के जरिए उन्हें हैड, हैंड व हार्ट तीनों ही तरह से पेड़ व पर्यावरण से जोड़ती है। यह वनीकरण के साथ-साथ क्रियात्मक पर्यावरणीय शिक्षा और जलवायु सशक्तिकरण की एक प्रक्रिया है। मैंने इस जंगल को शांतिदूत गांधी को समर्पित किया है और इस मॉडल को आगे बढ़ते हुए स्कूली शिक्षकों व ग्रामीण युवाओं के सहयोग से पश्चिमी राजस्थान में 170 गांधी संस्थागत वन विकसित करवा दिए हैं यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।