राजस्थान दिवस पर उदयपुर का भारतीय लोक कला मण्डल लोक रंगों से सजा
उदयपुर, 31 मार्च (हि.स.)। राजस्थान दिवस पर उदयपुर का भारतीय लोक कला मण्डल लोक रंगों से सजा। मंगलवार रात हुए राजस्थानी संस्कृति को दर्शाने वाली सतरंगी लोक प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मन मोह लिया। पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान दिवस के अवसर पर लोक कला मण्डल में संगोष्ठी, लोकनृत्य, लोक गायन एवं नाट्य मंचन के कार्यक्रम हुए।
भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि संस्था में राजस्थान दिवस के अवसर पर पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन के सहयोग दोपहर 3 बजे से ‘‘राजस्थानी कला एवं संस्कृति’’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी में उदयपुर ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा मुख्य अतिथि थे। उन्होंने राजस्थान की कला संस्कृति को को भारत का बताते हुए कहा कि राजस्थान ही भारत में एक मात्र ऐसा प्रदेश है जो पूरे विश्व में अपनी कला एवं संस्कृति के कारण जाना जाता है। संगोष्ठी में भारत के प्रतिष्ठित रंगकर्मी भानु भारती ने राजस्थान की कला एवं संस्कृति विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि राजस्थान की कला एवं संस्कृति काफी समृद्ध है यहां के लोक नृत्य, लोक कथाएं, लोक गीत, भाषाएं अपने आप में एक अलग पहचान रखती हैं। वर्तमान समय में जरूरत है इसे सहजने एवं संरक्षण की।
प्रतिष्ठित चित्रकार शैल चोयल ने बताया कि मेवाड़ की पारम्परिक चित्रकला न केवल भारत वरन् पूरे विश्व में प्रसिद्ध है परन्तु उसे अपने ही क्षेत्र में संरक्षण की आवश्यकता है, इसके लिए पारम्परिक चित्रकला के संग्रहालयों की स्थापना होनी चाहिए।
डाॅ. ललित पांडे ने राजस्थान में मानव सभ्यता के उद्गम एवं संस्कृतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति काफी समृद्ध रही है। राजस्थान न केवल भाषा, साहित्य एवं लोक संस्कृति से सम्पन्न रहा बल्कि यहां प्रचुर धातु एवं खनिज सम्पदा से समृद्ध रहा है। प्रसिद्ध रंगकर्मी विलास जानवे ने अपने वक्तव्य में कहा कि राजस्थान की लोक कला संस्कृति ने अपनी छाप सात समन्दर पार तक छोड़ी है। लोक कला एवं संस्कृति से जुड़े वर्ष में दो बड़े आयोजन कार्यक्रम किए जाने चाहिए। स्कूलों में भी छात्र-छात्राओं को कला एवं संस्कृति से संबंधित गतिविधियां दैनिक रूप से की जानी चाहिए।
इस अवसर पर कला मण्डल के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि लोक कलाओं के प्रचार-प्रसार एवं उसे नवीन पीढ़ी तक पहुंचाने में संग्रहालयों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः राजस्थान में इस तरह के अधिक से अधिक संग्रहालयों की स्थापना होनी चाहिए। इस अवसर पर जिला पर्यटन विभाग की सहायक निदेशक शिखा सक्सेना ने संगोष्ठी में आए अथितियों का अभार प्रकट करते हुए कहा कि आम जन को भी अपनी कला एवं संस्कृति के प्रति जाकरूक होना आवश्यक है जिससे हम इस धरोहर को संरक्षित कर पाएंगे।
रात को राजस्थानी लोक नृत्यों का कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें लंगा कलाकारों ने पारम्परिक राजस्थानी लोक गीतों से कार्यक्रम की शुरुआत की। उसके पश्चात तेराताली नृत्य एवं गुजरात का पावरी नृत्य दल ने अपनी प्रस्तुतियां दीं तो भारतीय लोक कला मण्डल के कलाकारों ने चरी नृत्य, घूमर नृत्य एवं भवाई नृत्यों की रंगारंग प्रस्तुतियां दीं।