आम को कीटाणु से बचाने के लिए एक साथ करें दवा का छिड़काव

Wednesday 14 Apr 2021 राष्ट्रीय

आम : रोग निदान के लिए कीटनाशक नहीं आ रहे काम, समस्या का हल ढूंढ रहा केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान

 
लखनऊ, 14 अप्रैल (हि.स.)। जहां भी पर कई आम का बागवानी है, वहां कीटों पर नियंत्रण करना किसानों के लिए काफी मुश्किल हाे रहा है। उन क्षेत्रों में परागण की भी समस्या आ रही है। ऐसे में किसानों को सामूहिक रूप से एक साथ दवा छिड़काव कर आम को बचाने का प्रयास करना सफल हाे सकता है। ये बातें बुधवार को केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा के निदेशक डाक्टर शैलेन्द्र राजन ने कही। उन्होंने बताया कि कीटनाशकों के प्रयोग के कारण कुछ कीटों में प्रतिरोधक क्षमता आ गयी है। इससे वे दवा छिड़काव से भी नहीं दूर हाे पा रहे हैं। इस पर संस्थान के वैज्ञानिक शोध करने में जुटे हुए हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि अभी थ्रिप्स (रूजी) के लिए कीटनाशक थियामेथोक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी (0.3 ग्राम/लीटर) के साथ छिड़काव करें। भुनगा रोग के लिए किसान इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल (0.3 मि.ली./लीटर) के साथ छिड़काव करें। इसी तरह थ्रिप्स और भुनगाः थियामेथोक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी (0.3 ग्राम/लीटर)। सेमीलूपर: लैम्बडा-सियालोथ्रिन 5 ईसी (1 मि.ली./लीटर) का छिड़काव करें। भुनगा और सेमीलूपर: इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत, लैम्बडा-सायलोथ्रिन 5 ईसी (1.5 मि.ली./लीटर) में छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण कीटों की रोकथाम में मिली असफलता के अतिरिक्त परागण की भी समस्याएं आ रही हैं, जिसके कारण बहुत अधिक संख्या में बौर आने के पश्चात भी झुमका के कारण फल कम लग रहे हैं। आम के अधिक क्षेत्रफल वाले स्थानों में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण परागणकर्ता की संख्या बहुत कम हो गई है। उन स्थानों पर जहां पर आम के कम बाग हैं, परागणकर्ता अधिक संख्या में उपलब्ध हैं और काफी मात्रा में फल उत्पादन हो रहा है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्य आम उत्पादक क्षेत्रों में भुनगा, थ्रिप्स (रूजी) और सेमीलूपर के आक्रमण के कारण आम की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। भुनगा के वयस्क एवं बच्चों के आक्रमण के कारण आम के फूल और छोटे-छोटे फल गिर जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण इनके द्वारा रस चूसना है। भुनगा के कारण लासी का उत्पादन एक आम बात है और यह चिपचिपा पदार्थ पत्तियों एवं अन्य भागों में कालापन आने का प्रमुख कारण है। उन्होंने कहा कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने रुजी को नियंत्रित करने के लिए लगभग 20 कीटनाशकों के प्रयोग में यह पाया कि अधिकतर कीटनाशक इस को समाप्त नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में नियंत्रण के लिए कारगर उपाय विकसित करने हेतु अधिक शोध की आवश्यकता है। यह कीट बागों में बहुत कम समय के लिए ही मिलता है। उस दौरान नियंत्रण संबंधित प्रयोगों को करने के लिए अधिक समय नहीं मिल पाता है। वैज्ञानिक इस कीट को दूसरे पौधों पर साल पर जीवित रखकर प्रभावी नियंत्रण के उपाय विकसित करने के लिए प्रयत्नशील हैं। इसके अतिरिक्त यह भी प्रयास है कि थ्रिप्स में किन रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता आ गई है। इसके लिए विशुद्ध कीटनाशक (टेक्निकल ग्रेड) का प्रयोग करके रसायनों के अप्रभावी होने के कारण को समझने की चेष्टा की जाएगी।

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